Shodashi Secrets
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॥ अथ श्रीत्रिपुरसुन्दरीचक्रराज स्तोत्रं ॥
बिंदु त्रिकोणव सुकोण दशारयुग्म् मन्वस्त्रनागदल संयुत षोडशारम्।
Her third eye represents higher notion, serving to devotees see further than Actual physical appearances to your essence of actuality. As Tripura Sundari, she embodies enjoy, compassion, as well as joy of existence, encouraging devotees to embrace life with open hearts and minds.
हर्त्री स्वेनैव धाम्ना पुनरपि विलये कालरूपं दधाना
साशङ्कं साश्रुपातं सविनयकरुणं याचिता कामपत्न्या ।
ऐसा अधिकतर पाया गया है, ज्ञान और लक्ष्मी का मेल नहीं होता है। व्यक्ति ज्ञान प्राप्त कर लेता है, तो वह लक्ष्मी की पूर्ण कृपा प्राप्त नहीं कर सकता है और जहां लक्ष्मी का विशेष आवागमन रहता है, वहां व्यक्ति पूर्ण ज्ञान से वंचित रहता है। लेकिन त्रिपुर सुन्दरी की साधना जोकि श्री विद्या की भी साधना कही जाती है, इसके बारे में लिखा गया है कि जो व्यक्ति पूर्ण एकाग्रचित्त होकर यह साधना सम्पन्न कर लेता है उसे शारीरिक रोग, मानसिक रोग और कहीं पर भी भय नहीं प्राप्त होता है। वह दरिद्रता के अथवा मृत्यु के वश में नहीं जाता है। वह व्यक्ति जीवन में पूर्ण रूप से धन, यश, आयु, भोग और मोक्ष को प्राप्त करता है।
गणेशग्रहनक्षत्रयोगिनीराशिरूपिणीम् ।
She may be the possessor of all great and excellent points, like Actual physical goods, for she teaches us to possess without the need of currently being possessed. It is alleged that stunning jewels lie at her click here ft which fell through the crowns of Brahma and Vishnu whenever they bow in reverence to her.
It can be wish that turns the wheel of karma, Which holds us in duality. It is actually Shodashi who epitomizes the burning and sublimation of these desires. It really is she who allows the Doing the job from outdated karmic designs, leading to emancipation and soul liberty.
हस्ते पाश-गदादि-शस्त्र-निचयं दीप्तं वहन्तीभिः
लक्ष्मी-वाग-गजादिभिः कर-लसत्-पाशासि-घण्टादिभिः
Cultural functions like folk dances, new music performances, and plays will also be integral, serving to be a medium to impart traditional stories and values, In particular towards the youthful generations.
‘हे देव। जगन्नाथ। सृष्टि, स्थिति, प्रलय के स्वामी। आप परमात्मा हैं। सभी प्राणियों की गति हैं, आप ही सभी लोकों की गति हैं, जगत् के आधार हैं, विश्व के करण हैं, सर्वपूज्य हैं, आपके बिना मेरी कोई गति नहीं है। संसार में परम गुह्रा क्या वास्तु है?
पञ्चब्रह्ममयीं वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥५॥